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निजीकरण की ख़ुशी

हमारे शाखा में एक ग्राहक हैं,नाम है बेचन दास।

महीने में कम से कम ११ दिन शाखा आते हैं, वो अलग बात है, की पैसा सिर्फ़ एक बार ही निकालते हैं, बाक़ी दस बार सिर्फ़ पासबूक अपडेट कराने आते हैं।

इनका जनधन खाता है,और पैसा भी सिर्फ़ सब्सीडी वाले ही आते हैं १/n
ये अलग बात है, की शाखा में आकर रौब पुरा झारते हैं।

एक दिन, हमारे दुग्गल साहब जो की पासबूक प्रिंट करते थे वो नहीं आए और उस दिन पासबूक प्रिंट नहीं हो रहा था। बेचन दास को जैसे ही मालूम चला आज पासबूक नहीं छपेगा, वो ग़ुस्से में तमतमाते हुए सीधा प्रबंधक के केबिन में पहुँचे। २/n
केबिन में पहुँच कर, उन्होंने प्रबंधक को शिकायत लगा दी, ऐसे कैसे काम करते हैं आप लोग, हमारे पैसे से तनख़्वाह लेते हैं और हमारा ही पासबूक नहीं छपेगा।

खैर प्रबंधक ने उनको समझा बुझा कर घर भेज दिया।

३-४ दिन पहले वो अख़बार ले कर मेरे पास आ गये, बोले अब देखो आपलोगों का क्या होगा। ३/न
वो खबर दिखाते हुए बहुत खुश नज़र आ रहे थे,खबर बैंकों के निजीकरण के सम्बंध में थी।

अब मैंने सोचा,इनको वास्तविकता से एक परिचय करवा ही देना चाहिए। मैंने कहा बेचन बाबू, अब जब सारे सरकारी बैंक भी निजी होने जा रहे,आप अपना एक खाता निजी बैंक में खुलवा ही लीजिए।

उनको सुझाव पसंद आया ४/n
अगले दिन बेचन बाबू पहुँच गये एक निजी बैंक, जो की उनके गाँव से ३५ km की दूरी पर था। जानकारी के लिए बता दूँ, हमारा बैंक उनके गाँव में ही था।

खैर, बेचन दास जब निजी बैंक के अंदर जा रहे थे, तो बंदूकधारी गार्ड अजीब सी नज़रों से उनको देख रहा था, शायद वेश भूषा देख कर।५/n
बेचन दास को थोड़ा अजीब लगा,लेकिन वो अंदर पहुँच गये। अंदर पंहुँचते ही वो ठिठक से गये। एक तरह के कपड़े में सारे बैंकर्स,एसी की ठंढी हवायें, चमचमाते हुए लाइट।पहली बार ऐसा बैंक देखा था उन्होंने।

वो ये सब देख ही रहे थे, तभी एक कर्मी उनके पास आकर पूछा,“Hello Sir, How may i help u” 6/n
बेचन दास को कुछ समझ नहीं आया, फिर उस बैंक कर्मी ने पूछा, सर मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ। बेचन बाबू ने अपने आने का प्रयोजन बताया, उन्हें तुरंत एक AOF दिया गया और कुछ जगह हस्ताक्षर करने के लिए बोला गया।

बैंक अधिकारी ने बताया, बाक़ी फ़ोर्म वो भड़ लेंगे। बेचन बाबू खुश हो गए। ७/n
अब अधिकारी ने बोला, सर १०००० रुपए वहाँ नगद जमा खिड़की पर जमा करवा दीजिए।

अब बेचन बाबू चौंके, १०००० क्यूँ? सरकारी वाले तो ० बैलेंस में खाता खोलते हैं।

अब उस निजी बैंक कर्मी के सुर बदल गये थे, अपने ग़ुस्से को दबाते हुए बोला, हाँ तो ये सरकारी बैंक नहीं है ना, वहीं चले जाओ आप ८/n
बाक़ी ग्राहक और बैंक कर्मी भी अब बेचन दास की ओर ही देख रही थी। बेचन दास अब थोड़ी शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे, उन्होंने कहा, मेरे पास पैसे नहीं है अभी, कल लाकर दे दूँगा।

पैसे जमा करने पर एटीएम कार्ड तो मिल जाएगा ना? बेचन बाबू ने जाते जाते पुछ लिया।

उसके लिए अलग से ८५० लगंगे। ९/n
अब बेचन बाबू को सरकारी बैंक याद आने लगा, उनको तो ० बैलेंस खाते में भी एटीएम घर पर आ गया था।

खैर उन्होंने फिर पुछ लिया, अच्छा चेकबूक तो मिल जाएगा।

उसके ३५० अलग से लगेंगे, अधिकारी का जवाब था।

और पासबूक?बेचन बाबू ने धीमे से पूछा।

वो यहाँ नहीं मिलता,इस बार गार्ड ने जवाब दिया १०/n
और साथ में गार्ड ने बाहर जाने के लिए इशारा भी किया।

बेचन दास बहुत ही भारी मन से, कुर्सी से उठ गए और बिना किसी से नज़र मिलाये बाहर निकल गये।

अगले दिन वो फिर मेरे शाखा आये, लेकिन चेहरे पर रौब की जगह आभार ने ले लिया था।

मुझे देखकर मुस्कुराए और पासबूक की लायन में लग गए। ११/११
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