वेद कहता है अयं यज्ञो भुवनस्य नाभि
क्यों ?
यज्ञ अर्थात संयोग वियोग होना ।
संयोग वियोग के लिए अनेकों सूक्ष्म बल कार्य करते हैं , जैसे EM Force , Nuclear Force
नाभि अर्थात केंद्र , केंद्र आधार का कार्य भी करता है । सम्पूर्ण ब्रम्हांड का आधार सूक्ष्म बल ही है ।
क्यों ?
यज्ञ अर्थात संयोग वियोग होना ।
संयोग वियोग के लिए अनेकों सूक्ष्म बल कार्य करते हैं , जैसे EM Force , Nuclear Force
नाभि अर्थात केंद्र , केंद्र आधार का कार्य भी करता है । सम्पूर्ण ब्रम्हांड का आधार सूक्ष्म बल ही है ।
यदि इन सूक्ष्म बलों को हटा दिया जाए तो ब्रम्हांड बिखर जाएगा , इसलिए वेद कहता है अयं यज्ञो भुवनस्य नाभि , मैं यज्ञ इस सम्पूर्ण ब्रम्हांड का आधार हूँ ।
ऋषियों ने यज्ञ हवन का अविष्कार क्यों किया ?
सृष्टि को समझकर ही किया ।
ऋषियों ने यज्ञ हवन का अविष्कार क्यों किया ?
सृष्टि को समझकर ही किया ।
सृष्टि में अनेकों सूक्ष्म पदार्थों में निरन्तर अनेकों रश्मियो का आवागमन होता है रहता है । अनेकों रश्मियां पदार्थो में enter करती है तो अनेकों उनसे बाहर लगातार रिसती रहती है , साथ ही इन पदार्थों को अनेकों बल थामे/बनाये रखते हैं ।
ऋषियों ने यज्ञ का अविष्कार किया , इन यज्ञों को ऐसा रूप दिया जिस से यह लगे जैसे कि यज्ञ सृष्टि का मानचित्र हो , सृष्टि को समझने का आसान तरीका , ऋषियों ने यज्ञ एक ऐसा उत्तम अविष्कार दिया है कि इस से अनेकों प्रयोजन एक साथ पूर्ण होते हैं ।
इस यज्ञ से न सिर्फ पर्यावरण शुद्धि होती है
इस यज्ञ से न सिर्फ पर्यावरण शुद्धि होती है
बल्कि यह सृष्टि का मानचित्र भी है ।
जैसे यज्ञ में अनेकों आहुति डाली जाती है , वैसे वह आहुति सूक्ष्म रूप में पुनः वेदी से निकलकर बाहर निकल जाती है ।
सृष्टि में भी ऐसा ही यज्ञ हो रहा है अर्थात , निरन्तर अनेकों रश्मियां पदार्थों में आवागमन करती है , उनसे रिसती भी है
जैसे यज्ञ में अनेकों आहुति डाली जाती है , वैसे वह आहुति सूक्ष्म रूप में पुनः वेदी से निकलकर बाहर निकल जाती है ।
सृष्टि में भी ऐसा ही यज्ञ हो रहा है अर्थात , निरन्तर अनेकों रश्मियां पदार्थों में आवागमन करती है , उनसे रिसती भी है
ऐसे अनेकों मन्त्र है जो यज्ञ में बोले जाते हैं और जिनका सम्बन्ध सृष्टि यज्ञ से है , असल मे पर्यावरण शुद्धि के साथ साथ , यह यज्ञ सृष्टि को समझने का एक आसान तरीका भी बनता है ।
यज्ञ के द्वारा वर्षा भी करवाई जा सकती है ।
यज्ञ के द्वारा वर्षा भी करवाई जा सकती है ।
निरुक्त 1:20 में महर्षि यास्क ने संकेत किया है कि प्रजापति ने स्वसृष्ट लोकों के प्रज्ञान के किये यज्ञों का सृजन किया ।
यज्ञ ब्रम्हांड को समझने के लिए भी है इसीलिए यज्ञकर्म में थोड़ा सा भी हेर फेर होने पर कर्म के दुष्ट होने यानी यथावत फल न मिलने की बात परम्परा से मानी जाती है ।
यज्ञ ब्रम्हांड को समझने के लिए भी है इसीलिए यज्ञकर्म में थोड़ा सा भी हेर फेर होने पर कर्म के दुष्ट होने यानी यथावत फल न मिलने की बात परम्परा से मानी जाती है ।
जैसे किसी मानचित्र में थोड़ी सी हेर फेर मानचित्र का उद्देश्य ही नष्ट कर दे इसी तरह यज्ञ कर्म में जैसा नियम हो वैसा ही होना चाहिए अन्यथा सृष्टि को समझने में व्यथा उत्पन्न होगी , गलत जानकारी उत्पन्न होती है ।
अस्तु यज्ञ का प्रयोजन न सिर्फ पर्यावरण शुद्धि है बल्कि सृष्टि को समझना भी है । ॐ शम ।।
