गांव के किसी बुजुर्ग से पूछा उनका जवाब "आज भैरू ज़िंदा होतयों तो दो डूक मारकर सीधा कर देता सबने आज भी ये कद है उनका ,भैरो सिंह जी शेखावात राजस्थान के भैरू बाबोसा ये सब देखकर बड़े याद आते है ।
वो अपनी धर्मपत्नी से 10 रूपए लेकर घर से निकले और चुनाव जीत गए ।।
ये राजस्थान के उस शेखावत की कहानी है ..जिसने अपने कार्यकाल में जातिवादी राजनीति को सिरे से नकार दिया था ..दांतारामगढ़ से चुनाव लड़े जीत गए ..उनकी जीत ने साबित कर दिया था एक जननायक का उदय हो गया ..सीट उनकी पसन्द की नही ..ये सीट पार्टी की पसन्द की थी ।
ये जो आज भूखे भेड़ियों की तरह 20-25 करोड़ के लिए लड़ रहे हैं ना ..जब उन्हें टिकट मिला था जेब खाली थी बस पार्टी का हाथ था ...वो 10 रुपए जो धर्मपत्नी के दिए चुनाव लड़ने के लिए उन 10 रूपए ने आधुनिक राजस्थान का निर्माण कर दिया ।।
हम आज भी उन 10 रुपए पे टिके हुए है ..
हमारी जड़े आज भी उनकी धर्मपत्नी के दिये इन 10 रुपए पे टिकी हुई है , आप राजस्थान में आज कही भी चले जाइये वो यही बोलेगा थू है गहलोत पायलट की इस राजनीति पे ..उनसे बस एक गलती हुई जो उन्होंने स्वीकार भी करी
जब वो मृत्युशैया पे थे ..".ये उनका खुद का कथन था गलती कर दी मै...
वसुंधरा को चुन लिया" ...वसुंधरा जब तक वो मृत्युशैया पे रहे उनसे एक बार भी मिलने नहीं गयी ...बल्कि वही गहलोत हाज़िरी लगाते थे ..कोई अपने गुरु के लिए इतना क्रूर कैसे हो सकता है ।
लोग बोलते है रानी से क्यों बैर है ..लोग सिर्फ बोलते है लोग उसके पीछे का कारण नही जानना चाहते ..
"अशोक मुझसे रोज मिलने आता है लेकिन जिसको मैंने अंगुली पकड़ के चलना सिखाया वह मुझसे मिलने नहीं आयी" यह भैरोसिंह जी का अंतिम समय मे बयान था ।।
हमे न गहलोत पसंद है ना रानी ..हमे दोनो नही चाइए .हमे भैरू बाबोसा जैसा चाइए जो मिलना मुश्किल है बस यही राजस्थान की राजनीति की नियति है पिछले 20 साल से ।
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