चाहिए थोड़ा लखनऊ हो जाए !!
पिछले कुछ दिनों से लखनऊ में हूँ, लॉकडाउन वीकेंड में बोरियत कुछ ज़्यादा ही हो रही थी तो सोचा की क्यूँ ना थोड़ा लखनऊ दर्शन ही कर लिया जाए.. वो भी अपनी सबसे प्रिय सवारी साइकल पे .. #Lucknow #apnalucknow #cycle
पिछले कुछ दिनों से लखनऊ में हूँ, लॉकडाउन वीकेंड में बोरियत कुछ ज़्यादा ही हो रही थी तो सोचा की क्यूँ ना थोड़ा लखनऊ दर्शन ही कर लिया जाए.. वो भी अपनी सबसे प्रिय सवारी साइकल पे .. #Lucknow #apnalucknow #cycle
चलिए सबसे पहले मिलते है लोफ़ो ( लॉकडाउन फ़ोल्डी ) से, जो इस लखनऊ दर्शन में हमारी साथी है, फ़ोल्डिंग साइकल का फ़ायदा ये है की आप इसको कहीं भी आसानी से ले जा सकते हैं,चाहें वो कार हो, मेट्रो हो या भारतीय रेल
चलिए इस थ्रेड में आपको लखनऊ की कुछ शानदार इमारतों के दर्शन कराते हैं !
चलिए इस थ्रेड में आपको लखनऊ की कुछ शानदार इमारतों के दर्शन कराते हैं !
शुरुआत करते हैं लखनऊ की शान रूमी दरवाज़े से - ६० फ़ीट ऊँचे इस इमारत के तुर्किश गेट भी कहा जाता है, आसफउद्दौला ने यह दरवाजा 1783 ई. में अकाल के दौरान बनवाया था ताकि लोगों को रोजगार मिल सके।अवध वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है, हाँ आजकल इसको रखरखाव की ज़रूरत है @UPGovt
अगला पड़ाव है इमामबाड़ा, जिसको हमेशा से हम भूलभूलैया ना से ही जानते है, कहावत है कि जिसको ना दे मौला , उसको दे आसिफुद्दौला । 1784 में लखनऊ में भयंकर अकाल पड़ा, तो लोग मदद मांगने नवाब के पास गये, तब नवाब साहब को उनके वजीरो में सलाह दी के वो खजाने में जमा राशि गरीबो में बाँट दे.
मगर नवाब साहब का मानना था के ऐसे खैरात में धन बांटने से लोगो को हराम का खाने की आदत पड़ जाएगी. इसलिए उन्होंने रोजगार देने के लिए एक इमारत का निर्माण कार्य शुरू करवाया। मशहूर वास्तुकार किफ़ायत उल्लाह के बनाये नक़्शे के तहत 14 साल में बनकर तैयार हुआ ये इमामबाड़ाअब लखनऊ की पहचान है
ब्रिटिश वास्तुकला का बेहतरीन नमूना २२१ फीट ऊँचा घंटाघर भारत का सबसे ऊंचा घंटाघर है। जिसका निर्मण नवाब नसीरूद्दीन हैदर ने १८८७ ई. में सर जार्ज कूपर के आगमन पर करवाया था जोसंयुक्त अवध प्रान्त के प्रथम लेफ्टिनेंट गवर्नर थे।
ग़दर और लखनऊ में फ़िल्मायी गयी कई और फ़िल्मों में आप इस पुल को देख सकते हैं, आसफ़उद्दौला द्वारा निर्मित पुराने शाही पुल को 1911 में कमज़ोर बता कर तोड़ दिये जाने के बाद अंग्रेज अधिकारियों ने 10 जनवरी 1914 यह पुल बनाकर लखनऊ की जनता को सौंपा था।
टीले वाली मस्जिद - पक्का पुल के पास गोमती नदी के किनारे बनी टीले वाली मस्जिद स्वतंत्रता संग्राम की गवाह है। मस्जिद परिसर में लगे इमली के पेड़ पर करीब 40 क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी। अवध में बेगम हजरत महल के नेतृत्व प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ी गई थी।
हाल में ही रीलीज़ हुई फ़िल्म #GulaboSitabo
में इस इमारत को बार-बार देखा तो सोचा की ये लखनऊ में कहाँ है, कब खोजने निकल पड़े तो सफ़ेद बारादरी ने निकल मिली इस इमारत को केसरबाग पैलेस के नाम से जानते हैं ! @ayushmannk

सफ़ेद बारादरी कैसरबाग में स्थित एक श्वेत संगमर्मर निर्मित महल है जिसका निर्माण वाजिद अली शाह ने करवाया था।
उमराव जान, शतरंज के खिलाडी, जुनून, गदर तनु वेड्स मनु, इशकजादे एवं बुलटराजा आदि फ़िल्मों की शूटिंग यहां हुई है।
उमराव जान, शतरंज के खिलाडी, जुनून, गदर तनु वेड्स मनु, इशकजादे एवं बुलटराजा आदि फ़िल्मों की शूटिंग यहां हुई है।
बात जब लखनऊ के पुरानी इमारतों की हो रही हो तो कॉल्विन तालुकेदार्स कालेज को कैसे ना याद किया जाए, आख़िरकार ये ४ सालों तक हमारा भी शिक्षण संस्थान रहा गोमती नदी के तट पर तकरीबन 80 एकड भूमि के विस्तार में फैले इस कालेज कॉल्विन तालुकेदार्स कालेज की स्थापना 11 मार्च 1891 में हुई थी।
इसमें प्रवेश की शर्त राजघराने का पुत्र या पाल्य होना ही थी।यह संस्था विशुद्ध रूप से रजवाडों के पाल्यों को इंगलिश माध्यम से शिक्षा दिलाने के लिये स्थापित की गयी थी जिस वर्ष इस की छात्र संख्या ने 100 का आंकडा छुआ उस दिन ख़ुशी में विद्यालय में एक दिन का अवकाश घोषित किया गया।
लखनऊ में विधान भवन की इस भव्य इमारत का शिलान्यास 15 दिसम्बर 1922 को तत्कालीन गवर्नर सर स्पेन्सर हारकोर्ट बटलर द्वारा किया गया था और 21 फ़रवरी 1928 को इमारत का उद्घाटन हुआ। यह बीसवीं सदी के इंडो-यूरोपियन वास्तुकला व शिल्पकारिता के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है।
सिकन्दर बाग़- यह बाग या उद्यान है जिसमे ऐतिहासिक महत्व की एक हवेली समाहित है। इसे अवध के नवाब वाजिद अली शाह (1822-1887) के ग्रीष्मावास के तौर पर बनाया गया था। नवाब ने इसका नाम अपनी पसंदीदा बेग़म, सिकंदर महल बेगम के नाम पर सिकंदर बाग़ रखा था।
1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान हुई लखनऊ की घेराबंदी के समय, ब्रिटिश और औपनिवेशिक सैनिकों से घिरे सैकड़ों भारतीय सिपाहियों ने इस बाग़ में शरण ली थी। 16 नवंबर 1857 को ब्रिटिश फौजों ने बाग़ पर चढ़ाई कर लगभग 2000 सिपाहियों को मार डाला था।