चीन ने जनवरी 2020 में अपनी सेना की टुकड़ियों को सशक्त और लड़ाकू परिस्थितियों में ढालने के नाम पर एक आदेश पारित किया, जिससे उन्होंने लगातार सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी सैन्य शक्ति को मज़बूत किया।
इस ख़बर पर उचित ध्यान ना देना क्या सरकार की कूटनीतिक विफलता नहीं, @DrSJaishankar जी? https://twitter.com/DrSJaishankar/status/1284094736039641088
चीन ने स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स के विस्तार के तहत जब जिबूती में अपना नौसेना का बेस बनाया तो भारत ने सेशेल्स से बात की क्योंकि हमारी समुद्री सीमा, विशेषतया पश्चिमी तट, सीधे सीधे प्रभावित हो रहे थे।
सेशेल्स ने प्रस्ताव स्वीकार करने के कुछ साल बाद फ़िर मना कर दिया। ये 'सफलता' है?
1. बाब अल मंडाब
2. हारमुज
3. मलक्का
4. लंबोक
जब स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स की बात चली है तो यह भी बताते चलिए कि जो ये चारों जलडमरूमध्य भारत के लिए आर्थिक और रणनीतिक तौर पर अति-महत्वपूर्ण हैं, उनके आसपास किस प्रकार चीन का निवेश बढ़ रहा है और हम कैसे रणनीतिक तौर पर घिर रहे हैं।
चीन का निवेश श्रीलंका के हंबनटोटा में ठीक-ठीक कितने गुना बढ़ा है, आपके पास इसके नवीनतम आंकड़ें होंगे। बताइए देश को, कि किस प्रकार चीन हंबनटोटा में 99 वर्ष की लीज़ लिए हुए है और आप लाल आंखों से ही काम चला रहे हैं।
साथ ही देशवासियों को इस बात से भी अवगत करवाते चलिए कि भारत, जापान और श्रीलंका एक त्रिपक्षीय करार के तहत कोलंबो में ईस्ट कंटेनर टर्मिनल का निर्माण करने वाले थे जिस पर अब श्रीलंका पुनर्विचार कर रहा है।
क्या यह चीन के दबाव में है या श्रीलंका के साथ आपके 'मधुर संबंधों' का नतीजा?
यदि भारत की नीति रही है कि तिब्बत एक स्वायत्तशासी देश है, उसको डोमिनियन स्टेट्स के जैसा रुतबा होना चाहिए तो फ़िर @narendramodi सरकार ने अभी तक "एक-चीन नीति" के तहत हांगकांग के स्वायत्तशासी का दर्जा छिनने पर कोई रूख क्यों नहीं अख़्तियार किया है? इससे क्या संदेश दे रहे हैं हम?
नेपाल पर की गई 2015 की आर्थिक नाकाबंदी पर भी कुछ प्रकाश डालिए @DrSJaishankar जी, कि कैसे विनाशकारी भूकंप के बाद सर्वाधिक सहायता देने के बाद भी @narendramodi सरकार की "बड़े-भाई" वाली नीति ने स्थलरुद्ध देश नेपाल को चीन की तरफ़ झुकने पर मजबूर कर दिया।
किस प्रकार @narendramodi सरकार वाराणसी-काठमांडू विमान उड़ानों में कमी और बेंगलुरू-काठमांडू विमान उड़ानों में निरंतर होती हुई बढ़त से मिलने वाले नेपाल से स्पष्ट इशारे के बावजूद सोती रही, इस पर एक बार गौर करिएगा।
@DrSJaishankar जी, आख़िर आप तो राजनयिक रहे हैं, अधिक बेहतर बताएंगे।
. @narendramodi सरकार की ढुलमुल और दोहरी विदेश नीति को आपसे अधिक और कौन बयां करेगा @DrSJaishankar जी?
किस प्रकार सरकार कभी श्रीलंका के तमिलियों को अपना मानती है तो उसी क्षण नेपाल के मधेशियों को नहीं, या कभी-कभी इसके ठीक उलट।
हमारे विदेश नीति के रुख में स्पष्टता का ऐसा अभाव क्यों?
लगभग दो दशकों तक अफ़ग़ानिस्तान के इकलौते मुख्य निवेशक होने के बाद भी हम पिछले कुछ वर्षों से बातचीत की मेज से गायब हैं। यह @narendramodi सरकार की कूटनीतिक असफलता का प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं तो और क्या है, आदरणीय विदेश मंत्री @DrSJaishankar जी?
क्या अफ़ग़ानिस्तान से इस प्रकार की हमारी बेदखली मध्य एशिया में हमारी संभावनाओं को क्षीण करने का कारण नहीं बन सकती है?
मध्य एशिया की बात हो और ईरान की बात ना हो तो ये आप जैसे कुशल राजनयिक की छवि के लिए ठीक नहीं, @DrSJaishankar जी।
बताइए देश को कि किस प्रकार जो मौका हमने अमेरिका के दबाव में आकर गवां दिया है, उसका पूरा फ़ायदा अब चीन उठा रहा है।
बताइए देश को कैसे हमने अमेरिका से चाबहार के लिए प्रतिबंधों में छूट मिलने के बाद भी अपने निवेश को किसी ना किसी कारणवश (प्रत्यक्षतया अमेरिका के दबाव में) रोके रखा।
तेल आयात करने की बात तो ख़ैर आप जाने ही दीजिए।
देशवासियों को यह भी जानने का अधिकार है कि किस प्रकार सारी जुगत लगाने के बाद भी @narendramodi सरकार लगभग सभी मानदंडों को पूरा करने के बाद भी अमेरिका के CAATSA नियम में अपवाद नहीं बन पा रही है, जिसके वजह से भारत रूस से S-400 जैसी तकनीक खुल कर खरीदने से सहम रहा है।
और @DrSJaishankar जी, अमेरिका का ज़िक्र करते समय आप यह ज़रूर ध्यान दीजिएगा कि कैसे भारतवर्ष गुट निरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक सदस्यों में से एक होने और इसके एक सक्रिय सदस्य का लंबा इतिहास रखने के बावजूद भी @narendramodi जी के दौर में अमेरिका की तरफ़ जाहिरा तौर पर झुक रहा है।
वैसे @DrSJaishankar जी, @RahulGandhi जी के पाकिस्तान पर चर्चा ना करने पर जब आपने तंज कस ही दिया है तो आपको ज़्यादा नहीं, सिर्फ़ 3-4 दिन पहले की याद दिलाता चलूं कि किस प्रकार कुलभूषण जाधव को अबद्ध और बेरोक वाणिज्यदूतीय पहुंच उपलब्ध ना होना @narendramodi सरकार की कूटनीतिक विफलता है।
जब बात पाकिस्तान की है तो सार्क (दक्षेस) समूह का ज़िक्र लाजमी है। क्या आपको नहीं लगता कि देश को यह बताना चाहिए कि @narendramodi जी के 2014 के शपथ ग्रहण के न्योते के बाद किस प्रकार उन्होंने इस संगठन को उपेक्षित किया है, या यूं कहें कि इसकी कीमत पर दूसरे संगठनों को बढ़ावा दिया है?
क्या आप लोग यह भूल गए हैं कि बिम्सटेक जैसे बाकी संगठन आर्थिक और तकनीकी आधार पर बने संगठन हैं, समान पहचान के आधार पर बने हुए नहीं?
जैसा कि श्री @RahulGandhi ने कहा कि ये लेन देन संबंधी साझेदारी है, रणनीतिक नहीं।
व्यापारिक आधार पर बने संगठनों से आत्मा का जुड़ाव हो भी तो कैसे?
मत भूलिए कि सार्क देशों के बीच आत्मा का जुड़ाव इसलिए भी है क्योंकि उसका आधार सांस्कृतिक है, व्यापारिक नहीं।
जब आत्मा का जुड़ाव, सामरिक, रणनीतिक संबंध जैसी बात ही नहीं तो फ़िर एक साथ बैठ कर समग्र क्षेत्रीय विकास की अवधारणा ही कहां रह गई, जिसमें सहयोगियों को स्वयं दिलचस्पी हो?
आदरणीय विदेश मंत्री @DrSJaishankar जी, राजनयिक के तौर पर आपने अत्यधिक मेहनत के साथ अपनी एक सशक्त छवि बनाई है। मेरे जैसे लाखों लोग आपकी कुशल कूटनीति के प्रशंसक रहे हैं।
अतः आपसे निवेदन है कि @narendramodi जी के ऐसे झूठे दावों का इस प्रकार समर्थन कर अपनी छवि को धूमिल ना होने दें।
You can follow @LaliteshPati.
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