SUNDAY SPECIAL
HINDUISM AND JAINISM
हिन्दू एवं जैन पंथ क्यों भिन्न नहीं
Long thread
#Hindu #Hinduism
#Jain #Jainism
End of debate
हिन्दू और जैन दो शरीर लेकिन आत्मा एक है। यह भी कह सकते हैं कि एक ही कुल के दो धर्म हैं- हिन्दू और जैन। जैन और हिंदू धर्म एक की भूमि पर उत्पन्न और विकसित हुए हैं इसीलिए दोनों की ही सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा एक ही है।
दोनों ही एक की वृक्ष की दो शखाओं की तरह है। हालांकि दोनों का दर्शन भिन्न है लेकिन यह भिन्नता गहराई से देखने पर लुप्त हो जाती है।
भगवान विष्णु ने ऋषभदेव के रूप में 8वां अवतार लिया। ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर थे। ऋषभदेव महाराज नाभि और मेरुदेवी के पुत्र थे।
दोनों द्वारा किए गए यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने महाराज नाभि को वरदान दिया कि मैं ही तुम्हारे यहां पुत्र रूप में जन्म लूंगा।इनके दो पुत्र भरत और बाहुबली तथा दो पुत्रियां ब्राह्मी और सुंदरी थीं।
भगवान ऋषभदेव स्वायंभुव मनु से 5वीं पीढ़ी में इस क्रम में हुए- स्वायंभुव मनु, प्रियव्रत, अग्नीघ्र, नाभि और फिर ऋषभ।
 जैन धर्म के 21वें तीर्थंकर नमि के बारे में उल्लेख है कि वे मिथिला के राजा थे। इन्हें राजा जनक का पूर्वज माना जाता है।
राजा जनक भगवान राम के श्‍वसुर थे। महाभारत के शांतिपर्व में कहा गया है- मिथिलायां प्रदीप्तायां नमे किज्चन दहय्ते।। उक्त सूत्र से यह प्रतीत होता है कि राजा जनक की वंश परंपरा को विदेही और अहिंसात्मक परंपरा कहा जाता था। विदेही अर्थात देह से निर्मोह या जीवनमुक्त भाव।
नमि की यही परंपरा मिथिला राजवंश में जनक तक पाई जाती है। नमिनाथ के पिता का नाम विजय और माता का नाम सुभद्रा था। आपका जन्म इक्ष्वाकु कुल में श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मिथिलापुरी में हुआ था।
नमिनाथ ने आषाढ़ मास के शुक्ल की अष्टमी को दीक्षा ग्रहण की तथा मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आपको कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। वैशाख कृष्ण की दशमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। ऐसा भी कहते हैं कि इक्ष्वाकु के 3 पुत्र हुए- कुक्षि, निमि और दण्डक।
इन 3 में से 1 निमि ही जैन धर्म के 21वें तीर्थंकर थे।22वें तीर्थंकर नेमिनाथ के पिता का नाम राजा समुद्रविजय और माता का नाम शिवादेवी था। आपका जन्म श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को शौरपुरी (मथुरा) में यादव वंश में हुआ था।
शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वासुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण। इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे।
श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को गिरनार पर्वत पर कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। आषाढ़ शुक्ल की अष्टमी को आपको उज्जैन या गिरनार पर्वत पर निर्वाण प्राप्त हुआ।
पवित्र नगरी अयोध्या जैन और हिन्दू दोनों ही धर्मों के लिए तीर्थस्थल है, क्योंकि यहीं पर भगवान श्रीराम का जन्म हुआ और यहीं पर जैन धर्म के तीर्थंकर ऋषभदेव, अजीतनाथ, अभिनंदन, सुमतिनाथ और अनंतनाथजी का जन्म भी हुआ।
पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी में हुआ,जो कि दोनों ही धर्मों का बड़ा तीर्थ स्थल है।भगवान राम का जन्म इक्ष्वाकु कुल में हुआ था।इसी कुल में जैन तीर्थंकर शांतिनाथ का भी जन्म हुआ। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म यदुवंश में हुआ और इसी वंश में जैन तीर्थंकर नेमिनाथ का भी जन्म हुआ।
तीर्थंकर पुष्पदंत की माता रमारानी इक्ष्वाकु कुल की थीं। वैवस्वत मनु के 10 पुत्रों में से 1 का नाम इक्ष्वाकु था। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की। ऐसा भी कहते हैं कि इक्ष्वाकु के 3 पुत्र हुए- 1.कुक्षि, 2.निमि और 3.दंडक।
तीर्थंकर ऋषभदेव को हिन्दू वृषभदेव कहते हैं। वैसे उनका भव चिह्न भी वृषभ ही है। वृषभ का अर्थ होता है बैल। भगवान शिव को आदिनाथ भी कहा जाता है और ऋषभदेव को भी। कैलाश पर्वत पर ही ऋषभदेव को कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ था।
नाथ कहने से वे नाथों के नाथ हैं। वे जैनियों के ही नहीं, हिन्दुओं के भी भगवान हैं, क्योंकि वे परम प्राचीन आदिनाथ हैं।जैन धर्म के 63 शलाका पुरुषों में 9 बलभद्र में भगवान राम का नाम शामिल है तो वहीं विष्णु के अवतार नारायण और श्रीकृष्ण को 9 वासुदेव में शामिल किया गया है।
9 प्रति वासुदेव में मधु, निशुंभ, बलि, रावण और जरासंध का नाम शामिल है। 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलभद्र, 9 वासुदेव और 9 प्रति वासुदेव मिलाकर कुल 63 शलाका पुरुष होते हैं।ऐसे कई राजा हुए हैं जिन्होंने हिन्दू और जैन धर्म को समान रूप से आगे बढ़ाया।
उन राजाओं में राजा स्वायम्भुव मनु, भरत, सगर, जनक, विक्रमादित्य और चन्द्रगुप्त मौर्य का नाम लिया जा सकता है। मौर्य और गुप्तकाल के कई राजा जैन और हिन्दू दोनों ही धर्मों को मानते थे।दोनों ही धर्मों के पुराणों के अनुसार 24 अवतार और 24 तीर्थंकर हुए हैं।
उसी तरह हिन्दू धर्म में 14 मनु हुए हैं, तो जैन धर्म में 14 कुलकर हुए हैं। मनु या कुलकरों ने ही समाज को सभ्य और तकनीकी संपन्न बनाने के लिए अथक प्रयास किए। 14 मनुओं के नाम- 1. स्वायम्भु, 2. स्वरोचिष, 3. औत्तमी, 4. तामस मनु, 5. रैवत, 6. चाक्षुष, 7. वैवस्वत, 8. सावर्णि
9. दक्ष सावर्णि, 10. ब्रह्म सावर्णि, 11. धर्म सावर्णि, 12. रुद्र सावर्णि, 13. रौच्य या देव सावर्णि और 14. भौत या इन्द्र सावर्णि। उसी तरह 14 कुलकरों के नाम- 1. प्रतिश्रुति, 2. सनमति, 3. क्षेमंकर, 4. सीमंकर, 5. सीमंकर, 6. सीमंधर, 7. विमलवाहन, 8. चक्षुमान
9. यशस्वी, 10. अभिचन्द्र, 11. चन्द्राभ, 12. मरुद्धव, 13. प्रसेनजित और 14. नाभिराज।
 जैन धर्म में 11 रुद्रों के नाम का उल्लेख मिलता है- 1. भीमावली, 2. जितशत्रु, 3. रुद्र, 4. वैश्रवानर, 5. सुप्रतिष्ठ, 6. अचल, 7. पुंडरीक, 8. अजितधर
9. अजितनाभि, 10. पीठ और 11. सात्यिक पुत्र। इसी तरह हिन्दू धर्म में भी 11 रुद्र हैं- 1. कपाली, 2. पिंगल, 3. भीम, 4. विरुपाक्ष, 5. विलोहित, 6. शास्ता, 7. अजपाद, 8. अहिर्बुधन्य, 9. शंभु, 10. चण्ड और 11. भव।
इसी तरह 14 इन्द्र और 14 नारद हुए हैं। यक्ष और यक्षिणियां भी समान हैं। कुबेर, गणेश और लक्ष्मी की पूजा दोनों में ही धर्मों में की जाती है। कुल मिलकर दोनों ही धर्म एक ही कुल खानदान के हैं।
ये सारी जानकारी आपके साथ साझा करने का उद्देश आपको ज्ञात कराना है कि दोनों धर्मों में भेद न करते हुए, ये समझिए कि दोनों एक ही वृक्ष की दो शाखाएं हैं जो अनगिनत सुगंधित पुष्पों से लदे हैं।
इन्हें काटिये मत, इनका आनंद लीजिये।
#जयश्रीराम
#जयजिनेंद्र
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