निवेदन है पूरी लेख जरूर पढ़ें।

'आर्या' वेब सीरीज देख रहा था जिसमे किसी मामूली बात को ले कर सुष्मिता सेन की बेटी उसे 'Bitch' बोल देती है और गुस्से में सुष्मिता अपनी बेटी को एक थप्पड़ लगा देती है, लेकिन उसके बाद सुष्मिता सेन अपने हाथों को देख कर उसे अफसोस करती है (1/1)
जैसे उसने सिर्फ थप्पड़ न मारा बल्कि बेटी की जान ले ली हो...

कहने का मतलब सिर्फ इतना कि इस कदर पैम्पर करने के बाद भी उस वेब सीरीज में सुष्मिता की 13 साल की बेटी पैरेंट्स की बात नही मानती...खुलेआम सिगरेट फूंकती है (1/2)
है...अपनी सगी मौसी के हस्बैंड को सिड्यूस करने की कोशिश करती है और पैरेंट्स सिर्फ उसे अकेला छोड़ने और सही टाइम पे बात करने का कदम उठाते है। (1/3)
और सिर्फ इतना ही नही...

इसी सीरीज में उसका एक 15 या 16 साल का बेटा होता है जिसकी एक हमउम्र गर्लफ्रैंड होती है वो उसे पेरेंट्स की मर्जी से घर लाता है...उसके साथ ड्रग्स लेता है और पता चलने पे उसकी माँ बडे प्यार से उसे पैम्पर करके ऐसा न करने को बोल देती है। (1/4)
दरअसल ये आजकल के अपर मिडिल क्लास या हाई सोसाइटी के पेरेंट्स जो अपने बच्चों को बच्चे की तरह नही पालते बल्कि उसे बाप की तरह ट्रीट करते हैं...कॉवेन्ट में पढ़ाते है और अपनी वैदिक संस्कृति से बिल्कुल अलग कर देते हैं...उनका पालन पोषण पाश्चात्य संस्कृति के आधार पर करते हैं (1/5)
बच्चे की गलती को गलत कहने से पहले उन्हें दस बार सोचना पड़ता है....उसकी हर जायज नाजायज मांग को पूरा करते हैं..हमेशा पता नही कौन से "आदर्श माता-पिता" बने रहने के भरम में बच्चों को पालते हैं और इसका नतीजा पता है क्या होता है...?? (1/6)
इन्ही सो कॉल्ड पैरेंट्स के लिए एक दिन न्यूज़ आती है कि '70 वर्षीय वृद्ध महिला का 1 महीने सड़ा हुआ शव घर के सोफे पर मिला...क्योंकि घर पे अकेले रहती थी और इन आदर्श माँ बाप के आदर्श बच्चे किसी फॉरेन कंट्री में सेटल है (1/7)
जिन्हें घण्टा फर्क नही पड़ता कि उनके माँ या बाप की लाश किसी फ्लैट के सोफे पे महीनों से पड़ी सड़ रही है...या अगर वो जीवित है तो किस वृद्धाश्रम में 2 वक्त की रोटियां पाने को तरस रहे हैं। (1/8)
अब अगर ऊपर वाले सीन से अपनी अपनी और अपने जैसे कई गांव से जुड़े मिडल क्लास या लोअर मिडिल क्लास भाइयों की लाइफ को रिलेट करना चाहे तो बिल्कुल पॉसिबल नही है (1/9)
क्योंकि हम तो बचपन मे सिर्फ इसलिए भी कूट दिए जाया करते थे कि पापा या मम्मी को मूड रिफ्रेश करना रहता था....कोई झूठ भी बोल दे कि इन्होंने 50 पैसे की मिलने वाली स्वीटी सुपारी तक खाई है तो पिछवाड़ा ऐसा लाल किया जाता था कि 3 दिन बैठना मुश्किल होता था... (1/10)
पापा घर गुस्से में आये तो पहले ही किताबें ले के बैठ जाते थे क्योंकि 99% पता होता था कि साला दिन भर की कोई गलती अगर मम्मी ने रिपोर्ट कर दी तो सारा गुस्सा अपन पे ही उतर जाना है... (1/11)
और हाँ ये कंपैरिजन इसलिए नही कर रहा कि मुझे इस बात का कोई अफसोस है बल्कि मुझे फक्र है इस बात पर कि हम कान्वेंट नही गए...बचपन मे रामायण, महाभारत और वैदिक कहानियां सुन के बड़े हुए.. (1/12)
और हमारे माता-पिता ने हमें इस तरह से पालन किया...हमे आज अपनो की कद्र है...हमे रिश्तों की कद्र होती है...हम अपनी संस्कृति का सम्मान करना जानते हैं...हम अपने माँ बाप का सम्मान करना जानते है...

शायद इससे बेहतर तरीके से बच्चों को पाला ही नही जा सकता।(1/13)
और यही कारण है कि आज तक शायद ही खबर आई हो कि गांव में कोई बूढ़ा बुजुर्ग लावारिस मिला या शायद ही ऐसा कोई गांव या छोटा शहर हो जहां पे वृद्धश्रम की जरूरत पड़ती हो। (1/14)
जिंदगी के बहुत ज्यादा अनुभव तो नही है लेकिन इतना दावे के साथ कह सकता हूँ अगर आपने अपने बच्चों को सिर्फ 14 साल की उम्र तक अपनी संस्कृति की तरफ मोड़ के रखा है (1/15)
उन्हें गीता और रामायण पढा पाए और अपनी महान संस्कृति की तरफ उनका इंटरेस्ट रख पाए, तो 110% निश्चिंत हो जाइए आपके बच्चे लाइफ में कुछ भी करेंगे लेकिन कभी आपको झुकने नही देंगे। (1/16)
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