अंतःकरण के तीन दोष
1. मल - (Impurity)
2. विक्षेप - (Detraction)
3. आवरण - (Veil)
1. मल - उचित-अनुचित का विचार किये बिना मन में जैसा आये वैसा करके सुख लेना। पाप-वासना, अशुद्ध आसक्ति, भोग-वासनाएँ, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, ये मल दोष हैं।
1. मल - (Impurity)
2. विक्षेप - (Detraction)
3. आवरण - (Veil)
1. मल - उचित-अनुचित का विचार किये बिना मन में जैसा आये वैसा करके सुख लेना। पाप-वासना, अशुद्ध आसक्ति, भोग-वासनाएँ, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, ये मल दोष हैं।
उपाय - निष्काम कर्म करके अंतःकरण का मलदोष निकाला जा सकता है। बाहर के सुख की वासना मिटाने के लिए निष्काम कर्म सहायक होते हैं। औरों को सुख देने के कार्य करने से अपने सुख की वासना निवृत्त होती है और सेवा, सत्कर्म, दान पुण्य आदि से मलदोष निवृत्त होने लगता है।
भक्तियोग से भी मलदोष निवृत्त होता है। प्रीतिपूर्वक भगवन्नाम जप, कीर्तन करने से भी पूर्व जन्म कृत बुरे संस्कार मिटते हैं और अंतकरण से मल दोष निवृत्त होता है |
2. विक्षेप - जैसे दर्पण गंदा है तो समझो मल है और दर्पण हिलडुल रहा है तो है विक्षेप।
2. विक्षेप - जैसे दर्पण गंदा है तो समझो मल है और दर्पण हिलडुल रहा है तो है विक्षेप।
हिलते डुलते दर्पण में चेहरा ठीक से नहीं दिखेगा। यदि दर्पण स्थिर होगा तभी चेहरा ठीक से दिखेगा। ऐसे ही अंतःकरण पवित्र तो है लेकिन जप-ध्यान करने बैठते हैं तो विचार-पर-विचार आने लगते हैं, यह है विक्षेप।
उपाय - विक्षेप दूर होता है भक्ति उपासना, प्राणयाम-जप-ध्यान आदि से।
उपाय - विक्षेप दूर होता है भक्ति उपासना, प्राणयाम-जप-ध्यान आदि से।
3. आवरण - आवरण अर्थात् अज्ञान, ‘मैं वास्तव में क्या हूँ’ इसका अज्ञान ही आवरण है।
आवरण दो प्रकार का होता हैः
असत्वादपादक आवरण और अभानापादक आवरण।
असत्वादपादक आवरण आम आदमी को होता है। उसे ईश्वर के अस्तित्व का पता नहीं होता। वह सोचता हैः ‘भगवान होते तो दिखते….'
आवरण दो प्रकार का होता हैः
असत्वादपादक आवरण और अभानापादक आवरण।
असत्वादपादक आवरण आम आदमी को होता है। उसे ईश्वर के अस्तित्व का पता नहीं होता। वह सोचता हैः ‘भगवान होते तो दिखते….'
अभानापाद आवरण भक्तों को, साधकों को होता है। वे मानते तो हैं कि भगवान हैं, उनकी प्रेरणा भी मानते हैं, उन्हें ईश्वर के अस्तित्व के विषय में भी समझ में आता है, लेकिन ईश्वर का अनुभव नहीं होता।
अभानापाद आवरण दूर करने के लिए आत्मा-परमात्मा के विषय में 'श्री योगवशिष्ठ महारामायण',
अभानापाद आवरण दूर करने के लिए आत्मा-परमात्मा के विषय में 'श्री योगवशिष्ठ महारामायण',
ब्रह्मसूत्र व उपनिषदों का पठन श्रवण करें, मनन करें, निदिध्यासन करें। यह अभानापाद आवरण मिटाने का शास्त्रीय तरीका है।
अस्तवादपाद आवरण सत्संग से मिटता है और साधना, श्रवण-मनन-निदिध्यासन एवं गुरुकृपा से मिटता है। दोनों आवरण मिट जाने से आत्मा बेपर्दा हो जाता है व ईश्वर का साक्षात्कार
अस्तवादपाद आवरण सत्संग से मिटता है और साधना, श्रवण-मनन-निदिध्यासन एवं गुरुकृपा से मिटता है। दोनों आवरण मिट जाने से आत्मा बेपर्दा हो जाता है व ईश्वर का साक्षात्कार
हो जाता है। आम आदमी को दोनों आवरण होते हैं। भक्त को, साधक को एक ही आवरण होता है और ज्ञानवान को दोनों ही आवरण नहीं रहते। अपने आत्मा परमात्मा के अनुभव में ज्ञानी निरावरण होते हैं।
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