जैन धर्म में पूजा: क्या, क्यों, किसकी, कैसे?
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जो वीतराग सर्वज्ञ और हितोपदेशी होते हैं, उन्हें आप्त कहते हैं, आप्त को देव भी कहते हैं। ऐसे सच्चे देवकी श्रावक पूजन करता है।
1. पूजन का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
'पू' धातु से पूजा शब्द बना है। पू का अर्थ अर्चना करना है। पज्चपरमेष्ठियों के गुणों का गुणानुवाद करना पूजा कहलाती है।
1. पूजन का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
'पू' धातु से पूजा शब्द बना है। पू का अर्थ अर्चना करना है। पज्चपरमेष्ठियों के गुणों का गुणानुवाद करना पूजा कहलाती है।
2. पूजा के कितने भेद हैं ?
१. द्रव्य पूजा - जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल और अर्घ चढ़ाकर भगवान् का गुणानुवाद करना द्रव्य पूजा है।
२. भाव पूजा - अष्ट द्रव्य के बिना परम भक्ति के साथ जिनेन्द्र भगवान् के अनन्तचतुष्टय आदि गुणों का कीर्तन करना भाव पूजा है।
१. द्रव्य पूजा - जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल और अर्घ चढ़ाकर भगवान् का गुणानुवाद करना द्रव्य पूजा है।
२. भाव पूजा - अष्ट द्रव्य के बिना परम भक्ति के साथ जिनेन्द्र भगवान् के अनन्तचतुष्टय आदि गुणों का कीर्तन करना भाव पूजा है।
3. दर्शन, पूजन, अभिषेक आदि क्यों करते हैं ?
तत्वार्थ सूत्र के मंगलाचरण के अन्तिम पद में कहा है "वन्दे तद्गुणलब्धये" हे भगवान्! जैसे गुण आप में हैं, वैसे गुणों की प्राप्ति मुझे भी हो। इससे आपके दर्शन, पूजन, अभिषेक आदि करते हैं।
तत्वार्थ सूत्र के मंगलाचरण के अन्तिम पद में कहा है "वन्दे तद्गुणलब्धये" हे भगवान्! जैसे गुण आप में हैं, वैसे गुणों की प्राप्ति मुझे भी हो। इससे आपके दर्शन, पूजन, अभिषेक आदि करते हैं।
4. द्रव्य पूजा और भाव पूजा के अधिकारी कौन हैं ?
द्रव्य पूजा एवं भाव पूजा दोनों का अधिकारी गृहस्थ श्रावक है एवं भाव पूजा के अधिकारी मात्र श्रमण (आचार्य, उपाध्याय और साधु) आर्यिका, एलक, क्षुल्लक एवं क्षुल्लिका हैं।
द्रव्य पूजा एवं भाव पूजा दोनों का अधिकारी गृहस्थ श्रावक है एवं भाव पूजा के अधिकारी मात्र श्रमण (आचार्य, उपाध्याय और साधु) आर्यिका, एलक, क्षुल्लक एवं क्षुल्लिका हैं।
5. पूजन के और कितने भेद हैं ?
पूजा के पाँच भेद हैं
१. नित्यमह पूजा - प्रतिदिन शक्ति के अनुसार अपने घर से अष्ट द्रव्य ले जाकर जिनालय में जिनेन्द्रदेव की पूजा करना, चैत्य और चैत्यालय बनवाकर उनकी पूजा के लिए जमीन, जायदाद देना तथा मुनियों की पूजा करना नित्यमह पूजा है।
पूजा के पाँच भेद हैं
१. नित्यमह पूजा - प्रतिदिन शक्ति के अनुसार अपने घर से अष्ट द्रव्य ले जाकर जिनालय में जिनेन्द्रदेव की पूजा करना, चैत्य और चैत्यालय बनवाकर उनकी पूजा के लिए जमीन, जायदाद देना तथा मुनियों की पूजा करना नित्यमह पूजा है।
२. चतुर्मुख पूजा - मुकुटबद्ध राजाओं के द्वारा जो जिनपूजा की जाती है उसे चतुर्मुख पूजा कहते हैं, क्योंकि चतुर्मुख बिम्ब विराजमान करके चारों ही दिशा में पूजा की जाती है। बड़ी होने से इसे महापूजा भी कहते हैं। ये सब जीवों के कल्याण के लिए की जाती है, इसलिए इसे सर्वतोभद्र भी कहते हैं।
३. कल्पवृक्ष पूजा - याचकों को उनकी इच्छानुसार दान देने के पश्चात् चक्रवर्ती अर्हन्त भगवान् की जो पूजन करता है, उसे कल्पवृक्ष पूजा कहते हैं।
४. अष्टाहिका पूजा - अष्टाहिका पर्व में जो जिनपूजा की जाती है, वह अष्टाहिका पूजा है।
४. अष्टाहिका पूजा - अष्टाहिका पर्व में जो जिनपूजा की जाती है, वह अष्टाहिका पूजा है।
५. इन्द्रध्वज पूजा - इन्द्रादिक के द्वारा जो जिनपूजा की जाती है, वह इन्द्रध्वज पूजा है।
6. पूजा के पर्यायवाची नाम कौन-कौन से हैं ?
याग, यज्ञ, क्रतु, सपर्या, इज्या, अध्वर, मख और मह। ये सब पूजा के पर्यायवाची नाम हैं।
6. पूजा के पर्यायवाची नाम कौन-कौन से हैं ?
याग, यज्ञ, क्रतु, सपर्या, इज्या, अध्वर, मख और मह। ये सब पूजा के पर्यायवाची नाम हैं।
7. पूजा के कितने अंग हैं ?
पूजा के छ: अंग हैं - अभिषेक, आह्वान, स्थापना, सन्निधिकरण, पूजन और विसर्जन।
8. अभिषेक किसे कहते हैं ?
"अभिमुख्यरूपेण सिंचयति इति अभिषेकः"। सम्पूर्ण प्रतिमा जल से सिञ्चित हो। इस प्रकार प्रासुक जल की धारा जिन प्रतिमा के ऊपर से करना अभिषेक है।
पूजा के छ: अंग हैं - अभिषेक, आह्वान, स्थापना, सन्निधिकरण, पूजन और विसर्जन।
8. अभिषेक किसे कहते हैं ?
"अभिमुख्यरूपेण सिंचयति इति अभिषेकः"। सम्पूर्ण प्रतिमा जल से सिञ्चित हो। इस प्रकार प्रासुक जल की धारा जिन प्रतिमा के ऊपर से करना अभिषेक है।
9. अभिषेक कितने प्रकार का होता है ?
अभिषेक चार प्रकार का होता है -
१. जन्माभिषेक - सौधर्म इन्द्र तीर्थंकर बालक को पाण्डुक शिला पर ले जाकर करता है।
२. राज्याभिषेक - जो तीर्थंकर राजकुमार को राज्यतिलक के समय किया जाता है।
अभिषेक चार प्रकार का होता है -
१. जन्माभिषेक - सौधर्म इन्द्र तीर्थंकर बालक को पाण्डुक शिला पर ले जाकर करता है।
२. राज्याभिषेक - जो तीर्थंकर राजकुमार को राज्यतिलक के समय किया जाता है।
३. दीक्षाभिषेक - यह तीर्थंकर वैराग्य होने पर दीक्षा लेने के पूर्व किया जाता है।
४. चतुर्थाभिषेक - जिनबिम्ब प्रतिष्ठा में ज्ञान कल्याणक के पश्चात् किया जाता है,
इस चतुर्थाभिषेक को ही जिनप्रतिमा अभिषेक कहते हैं। जो पूजन से पूर्व में किया जाता है।
४. चतुर्थाभिषेक - जिनबिम्ब प्रतिष्ठा में ज्ञान कल्याणक के पश्चात् किया जाता है,
इस चतुर्थाभिषेक को ही जिनप्रतिमा अभिषेक कहते हैं। जो पूजन से पूर्व में किया जाता है।
10. जिन प्रतिमा अभिषेक कब से चल रहा है ?
जिन प्रतिमा अभिषेक अनादिकाल से चल रहा है, क्योंकि तिर्थंकरो के पञ्चकल्याणक एवं अकृत्रिम चैत्यालय अनादिनिधन हैं। अनादिकाल से चतुर्निकाय के देव अष्टाहिका पर्व में नंदीश्वरद्वीप जाकर अभिषेक एवं पूजन करते हैं। n/n
जिन प्रतिमा अभिषेक अनादिकाल से चल रहा है, क्योंकि तिर्थंकरो के पञ्चकल्याणक एवं अकृत्रिम चैत्यालय अनादिनिधन हैं। अनादिकाल से चतुर्निकाय के देव अष्टाहिका पर्व में नंदीश्वरद्वीप जाकर अभिषेक एवं पूजन करते हैं। n/n
आचार्य श्री पूज्यपाद स्वामी नंदीश्वरभक्ति में लिखते हैं -
भेदेन वर्णना का सौधर्म: स्नपनकर्नुतामापन्नः।
परिचारकभावमिताः शेषेन्द्रारुन्द्रचन्द्र निर्मलयशसः ॥ 15॥
भेदेन वर्णना का सौधर्म: स्नपनकर्नुतामापन्नः।
परिचारकभावमिताः शेषेन्द्रारुन्द्रचन्द्र निर्मलयशसः ॥ 15॥
अर्थ :- उस पूजा में सौधर्म इन्द्र प्रमुख रहता है, वही जिन प्रतिमाओं का अभिषेक करता है। शेष इन्द्र सौधर्म इन्द्र के द्वारा बताए गए कार्य करते हैं।
11. अभिषेक में वैज्ञानिक कारण क्या हैं ?
प्रत्येक धातु की अलग-अलग चालकता होती है। अत: जब धातु की प्रतिमा पर जल की धारा छोड़ते हैं तब धातु के सम्पर्क से जल का आयनीकरण होता है, उस आयन युक्त जल (गन्धोदक) को उत्तमांग में लगाने से शरीर में स्थित हीमोग्लोबिन में वृद्धि करते हैं।
प्रत्येक धातु की अलग-अलग चालकता होती है। अत: जब धातु की प्रतिमा पर जल की धारा छोड़ते हैं तब धातु के सम्पर्क से जल का आयनीकरण होता है, उस आयन युक्त जल (गन्धोदक) को उत्तमांग में लगाने से शरीर में स्थित हीमोग्लोबिन में वृद्धि करते हैं।