ये देश का दुर्भाग्य है कि जिस एक व्यक्ति ने रक्षा मंत्री के तौर पर भारतीय सेना के मनोबल को सबसे अधिक गिराया, जो आज़ादी बाद के पहले रक्षा घोटाले- जीप घोटाले का सूत्रधार रहा,1962 की लड़ाई में चीन से मिली हार का सबसे बड़ा जिम्मेदार रहा, उस कृष्ण मेनन को अब भी सम्मान की जगह हासिल है!
सेना भवन के सामने अब भी वीके कृष्ण मेनन की मूर्ति लगी है। सेना में जिस आदमी ने राजनीति की शुरुआत की, थिमैया, थोराट, वर्मा और उमराव सिंह जैसे मशहूर जनरलों को परेशान किया, कुछ को इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया, उस मेनन को भला कैसे आदर की जगह मिलनी चाहिए, वो भी सेना भवन के सामने???
1962 में चीन के सामने भारतीय सेना की कोई तैयारी नहीं थी, योग्य अधिकारियों की सलाह मानने की जगह बीएम कौल जैसे नेहरू के खास लेकिन अयोग्य अधिकारियों की सलाह पर मेनन ने फॉरवर्ड पॉलिसी को आगे बढ़ाया।सामरिक रणनीति पर कोई ध्यान नहीं दिया, बल्कि अपनी मर्ज़ी थोपी, जिससे देश की नाक कटी थी!
उस वीके कृष्ण मेनन की मूर्ति का अब भी सेना मुख्यालय के सामने मौजूद होना सेना की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है, तुर्रा ये भी कि सेना भवन वाला इलाका कृष्ण मेनन लेन के तौर पर जाना जाता है। अनेक ऐतिहासिक गलतियों को @narendramodi सरकार ने ठीक किया है, ये भी गलती सुधार ली जाए तो बेहतर!
अगर 1962 के युद्ध के बाद मेनन की कुर्सी नेहरू के समर्थन के बावजूद गई नहीं होती, तो शायद 1971 की जीत के हीरो मानेकशॉ पहले फील्ड मार्शल तो दूर, भारतीय सेना के जनरल भी नहीं बने होते। मेनन ने तो बीएम कौल के साथ मिलकर, नेहरू के समर्थन के साथ उन्हें बर्खास्त करने की साज़िश रच ली थी!
देश के लोगों को ये जानना चाहिए और समय निकाल कर इन जैसी किताबों और ऐसे नेताओं के बारे में पढ़ना भी चाहिए ताकि अतीत की गलतियों से सबक सीखकर भविष्य को बेहतर किया जाए!