शुभ प्रभात मित्रों..
सुबह की शुरुआत करते हैं एक महान व्यक्तित्व के साथ जिन्होंने करोड़ों भारतीयों के जीवन को प्रभावित किया..
बात करते हैं केशव बलिराम हेडगेवार की..
आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर.. https://twitter.com/Sheshapatangi/status/1274526709526609921
मई 1921 में हेडगेवार को महाराष्ट्र में राजद्रोह और आपत्तिजनक भाषणों के लिए गिरफ्तार किया गया।
मामले की सुनवाई 14 जून,1921 को आरंभ हुई।
कुछ आरंभिक सुनवाईयों के बाद उन्होंने इस मामले में स्वयं ही पैरवी करने का निर्णय लिया
और 5/8/1921 को लिखित बयान पढ़ा जिसे सुनने के बाद जस्टिस स्मेली ने कहा,"इनका यह वक्तव्य इनके भाषणों से अधिक विद्रोही है।"
19/8 के अपने निर्णय में न्यायधीश ने उन्हें लिखित में वचन देने को कहा कि-
+
वे अगले एक वर्ष तक सरकार के विरुद्ध कोई भाषण नहीं देंगे और 3000 रुपये का जमानत पत्र भी जमा करवाएं।
तुरंत उत्तर मिला- मुझे विश्वास है कि मैं बिल्कुल निर्दोष हूँ। दमनकारी नीति आग में घी डालने का काम करेगी।
+
मुझे विश्वास है कि वह दिन दूर नहीं जब फ़िरंगी सरकार को अपने दुष्कर्मों का फल मिलेगा।
सर्वव्यापी ईश्वर के न्याय पर मुझे विश्वास है।
इसलिए मैं जमानत के लिए इस आदेश की अनुपालना से इंकार करता हूँ।
उन्हें एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।
हेडगेवार कोर्ट से बाहर आए और वहाँ एकत्रित लोगों से कहा,"जैसा कि आप जानते हैं मैंने राजद्रोह के इस मामले में अपनी पैरवी स्वयं की है।फिर भी ऐसा दर्शाया जा रहा है कि ऐसा कर मैंने राष्ट्रीय आंदोलन के साथ विश्वासघात किया है। ..+
किंतु मुझे लगता है कि जबरदस्ती लादे गए मुकदमे में किसी कीड़े की तरह कुचल दिया जाना बहुत बड़ी नासमझी है।
विदेशी शासकों की दुष्टता सारे संसार को बताना हमारा कर्तव्य है और देशभक्ति भी।
और स्वयं का बचाव नहीं करना आत्मघाती सिद्ध होता।"
यदि आप स्वयं का बचाव न करना चाहें तो ना करें किंतु ईश्वर के लिए अपने से असहमत होने वालों की देशभक्ति को कम न समझें।
देशभक्ति के धर्म निर्वाह में यदि हमें जेल जाना पड़े,अंडमान भेजा जाए या फाँसी पर लटका दिया जाए तो हमें उसके लिए सहर्ष तैयार रहना चाहिए। +
इस वहम में न रहें कि जेल जाना ही स्वतंत्रता प्राप्ति का एकमात्र मार्ग है।जेल के बाहर भी राष्ट्र सेवा की अनेक संभावनाएं हैं।
मैं एक साल बाद मिलूँगा,तब तक आंदोलन से दूर रहूँगा किंतु मुझे विश्वास है कि "पूर्ण स्वराज" तब तक पूरी तरह सक्रिय हो चुका होगा। +
भारत को विदेशी शासन द्वारा गुलाम बनाए रखना अब संभव नहीं है। मैं आप सभी का आभार व्यक्त करता हूँ। शुभकामनाएं।"

हेडगेवार को जुलाई 1922 में रिहा किया गया
और उनके स्वागत हेतु आयोजित समारोह को
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल नेहरू और हकीम अजमल खां ने संबोधित किया।
हेडगेवार को 1922 में प्रावधायी कांग्रेस का संयुक्त सचिव नियुक्त किया गया।
वे कांग्रेस के स्वयंसेवी संगठन हिन्दुस्तानी सेवा दल के सदस्य भी रहे।

1923 में खिलाफत आंदोलन के चलते हुए सांप्रदायिक दंगों ने उनकी सोच एकदम बदल दी।
हेडगेवार को लगा कि कांग्रेस नेतृत्व हिंदुओं की आशंकाओं को दूर करने में असफल रहा है और समय आ गया है कि हिन्दुओं को संगठित करने के लिए एक संगठन बनाया जाए।
प्लेग से अपने माता पिता दोनों को खो देने के बाद हेडगेवार की शिक्षा-दीक्षा उनके संबंधियों और मित्रों की सहायता से हुई थी।
उन सभी ने शिक्षा और देश के प्रति उनका समर्पण देखते हुए उन्हें अध्ययन के लिए कलकत्ता के नेशनल मेडिकल कालेज भेजा।
कलकत्ता भेजने का एक मुख्य उद्देश्य यह भी था कि वे शीर्ष क्रांतिकारी नेता पुलिन बिहारी दास की देखरेख में प्रशिक्षण ले सकें।
You can follow @Akshinii.
Tip: mention @twtextapp on a Twitter thread with the keyword “unroll” to get a link to it.

Latest Threads Unrolled:

By continuing to use the site, you are consenting to the use of cookies as explained in our Cookie Policy to improve your experience.