एम.एस.मिथाइ के ही पुस्तक के पृष्ठ 206 पर एक सन्यासिनी का जिक्र है जिसका असली नाम किसी को नही मालूम था। पुस्तक में उनका नाम श्रद्धा है।
बात 1948 की है। तब नेहरू दिन में राजनीति में व्यस्त होते थे और किसी से मिलना अर्धरात्रि को ही करते थे।
वो सन्यासी संस्कृत की विद्वान थी। संसद
में सभी उनका व्याख्यान सुनने को आतुर थे। वो भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृति की अच्छी जानकार थीं।
नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय ने इंटरव्यू से सम्बंधित हिन्दी में लिखा एक पत्र नेहरू को सौंपा और नेहरू इंटरव्यू देने को तैयार हुए। समय आधी रात का दिया गया।
मिथाइ लिखते
हैं, एक रात मैंने उसे प्रधानमंत्री निवास से निकलते देखा। वो बहुत खूबसूरत और दिलकश थीं। एक बार लखनऊ दौरे के समय श्रद्धा माता उनसे मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र ले कर आये और नेहरू ने उसे भी उत्तर दिया और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गयाब हो गयी और किसी के ढूंढने पर भी नही
मिली।
1949 में बैंगलोर के एक कॉन्वेंट से एक लड़का पत्रों का एक बंडल ले कर आया। उसने कहा कि उत्तरभारत की एक युवती कुछ दिन पहले कॉन्वेंट में आई थी उसने एक बच्चे को जन्म दिया और बिना किसी को अपना नाम पता बताए बच्चे को ओर अपने निजी वस्तुओं को छोड़ चली गयी। उसके निजी वस्तुओं में ही
नेहरू जी की हिंदी में लिखी ये पत्र थे।
मिथाइ कॉन्वेंट की वार्डन से उस महिला के और उसके बच्चे के बारे में बहुत सवाल जबाब किये पर उस वार्डन ने अपना मुह नही खोला। सोचो क्यों?
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