कहते है इतिहास ख़ुद को दोहराता है। पर जितना मैं इतिहास के गहराइ में गया हूँ , एक ही बात समझ पाया हूँ की इतिहास ख़ुद को दोहराए ना दोहराए वो सबसे ताक़तवर चीज़ को हमेशा ही दबा देता है । जैसे की हमारा देश भारत। इतिहास में हम पूरी दुनिया में सबसे आगे थे, चाहे वो कोई भी क्षेत्र क्यूँ
ना हो। और आज हम ग़रीबी से जूझ रहे हैं।

पर भारत के अंदर भी एक राज्य के साथ ठीक ऐसा ही कुछ हुआ, जैसा कि 2014 तक भारत के साथ विश्व में होता था।

वो राज्य है - बिहार । हाँ वही बिहार जो भारत में सबसे ज़्यादा IAS-IPS देता है , पर आज भी हम बिहारियो को बेकार और बेवक़ूफ़
समझा जाता है । पढ़े लिखे लोगों कि हिसाब से बोले तो low standard. आइए एक बार आपको बिहार के इतिहास में ले चले ।

हज़ारों साल पहले की बात है जब हरी भरी भूमि से, जहाँ गंगा की पवित्र धारा बहती है, एक ख़ूबसूरत रानी ने जन्म लिया - सीता । सीता बिहार की बेटी जिसका बचपन बिहार में ही बिता
और बिहार के मिट्टी से शुरू हुई अब तक की सबसे बड़ी महाकाव्य की रचना- रामायण । हाँ वही रामायण और सीता जिसके लिए हम आज भी ट्विटर पर लड़ते है ।

विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग की शुरुआत भी सीता कि विवाह से ही शुरू हुई । क्योंकि जो मिथिला पेंटिंग की पुरानी चित्रकला मिलती है वो सीता राम
की ही है । बिहार का इतिहास बताता है की बिहार में औरतों को बहुत अधिक इज़्ज़त दी जाती थी क्योंकि वो सीता जैसी ही स्वाभिमानी होती थी ।

और शायद यही कारण था की मौर्य समराज्य के पहले राजा चंद्रगुप्त मौर्य की 700 महिला अंगरक्षक थी । मौर्य, जिसका समराज्य दक्षिण एसिया तक फैला था ।और जिसे
भारतवर्ष का पहला वास्तविक साम्राज्य माना जाता है वो है मगध । जिसकी शुरुआत बिहार के ही मिट्टी से हुई और इसकी राजधानी बनी पाटलिपुत्र (पटना)। जिस बुद्धिमान व्यक्ति ने चंद्रगुप्त मौर्य को मात्रा 20 साल की आयु में राजा बनाया, वो थे चाणक्य। चाणक्य के जन्मस्थान पर विवाद है लेकिन
अगर कुछ scholars की माने तो उनका जन्म्स्थान पाटलिपुत्र ही था। ख़ैर जन्मभूमि कुछ भी रही हो किन्तु कर्मभूमि तो बिहार ही रही । चाणक्य क्या थे ये तो सबको ही पता है, मुझे बताने की ज़रूरत नहीं।

केंद्रीकरण और करव्यवस्था जैसी आधुनिक नीतियाँ भी सबसे पहले मौर्य ने ही शुरू की थी।
समराज्य की स्थापना के बाद, चंद्रगुप्त मौर्य धर्म की स्थापना में लग गए। उन्होंने जैन धर्म अपना लिया और अपने जीवन के आख़िरी साल राज्य त्याग कर भिक्षु बन के गुज़ारी ।

जैन धर्म का का विकास बिहार के भूमि पर ईसा से पूर्व 6 सदी में हुआ । जैन धर्म के 24 धर्मगुरु भगवान महावीर का
जन्म वैशाली (बिहार) में हुआ था ।30 साल के उम्र में उन्होंने घर त्याग दिया था और 12 वर्ष के कठिन ताप के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई । हर जीवित प्राणी जीना चाहता है और उसे जीने का अधिकार मिलना चाहिए। जीवन कि पवित्रता jain धर्म का आधार है । यह एक क्रांतिकारी विचार था जो बिहार
की धरती से उभारा।

जैन भक्त चंद्रगुप्त मौर्य के पोते थे भारत के सबसे प्रसिद्ध राजाओं में से एक सम्राट अशोक । प्रियदर्शी अशोक से पहले अशोक को क्रूर अशोक के नाम से जाना जाता था । पटना का आगम कुँआ वो कुँआ माना जाता है जहाँ अशोक लाशें फ़िकवाया करता था। Ashokavadana
पुस्तक की माने तो अशोक एक क्रूर शासक था पर कलिंग युद्ध में मौत के मंज़र को देख के उसका हृदयपरिवर्तन हो गया और उसके बाद बौद्ध धर्म अपना कर वो दुनिया के सबसे शांतिप्रिय शासक बने । अशोक ने दिखाया की सोच और दर्शन से जिता जा सकता है। ऐसे ही बने वो महान सम्राट प्रियदर्शी अशोक, जो बिहार
के इतिहास के सबसे बड़े प्रतीक बने।

विहार को बिहार नाम बौद्ध धर्म से ही मिला। गौतम बुद्ध लोगों के दुःख दूर करना चाहते थे। अंततः उन्हें गया (बिहार) में एक पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई।

प्राचीन भारत में बिहार अपने उच्च सिक्षा के लिए जाना जाता था ।
नालंदा विश्विद्यालय पूरी दूनिया में अपने सिक्षा के लिए प्रसिद्ध था । नालंदा यूनिवर्सिटी के बारे में विस्तार से जानिए -

https://twitter.com/hathyogi1/status/1187404467768979456?s=20

ईसा पूर्व छठवि सदी के बिहार को यक़ीनन बड़ी सोच वाला बिहार कह सकते है । बौद्ध, जैन और लोकतंत्र, जी हाँ लोकतंत्र ।
वैशाली, जिसे विश्व का पहला गणराज्य माना जाता है, वो बिहार राज्य में स्थित है। वैशाली का नाम राजा वैशालिक से लिया गया है, जिनके वीर कर्म हिंदू महाकाव्य रामायण में वर्णित हैं।

वैशाली के जैन और बौद्ध ग्रंथों में प्रमुखता से उल्लेख किया गया है की वैशाली को लिच्छवी कबीले के शासन के
तहत 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के प्रतिनिधियों की एक निर्वाचित विधानसभा के साथ गणतंत्र के रूप में स्थापित किया गया था।

जिन बिहारीयो को लोग ज़ीरो समझते हैं, वो ये नहीं जानते की ज़ीरो की खोज करने वाला आर्यभट्ट भी एक बिहारी ही था ।

अगर आपको लगता है की भारत की आज़ादी में
बिहार का कोई हाथ नी था तो आगे की कहानी आपके होश उड़ा देगी ।

1857, जब देश में अंग्रेज़ों से बग़ावत की आग भड़की थी तब बिहार में महज़ एक किताब बेचने वाले शख़्स पीर अली ने 3 july को ब्रिटिश डेप्युटी अफ़ीम एजेंट को पटना में मार दिया, नतीजा, पीर अली और उसके 14 साथियों को फाँसी दे दी
गयी ।

दूसरी तरफ़, बिहार में दानापुर के क्रांतकारियो ने भी 25 जुलाई सन 1857 को विद्रोह कर दिया और आरा पर अधिकार प्राप्त कर लिया. इन क्रांतकारियों का नेतृत्व कर रहे थे कुँवर सिंह.

कुँवर सिंह, एक 80 वर्षीय वृध ज़मींदार, जिसने अंग्रेज़ों को अपनी वीरता का कई प्रमाण दिया।
कहते है लड़ते हुए एक गोली उनके एक हाथ में लग गयी, तब उन्होंने अपनी ही तलवार से अपना वो हाथ काट कि गंगा में अर्पित कर दिया और तभी से हम उन्हें वीर कुँवर सिंह के नाम से जानते है ।

चंपारण’ बिहार राज्य का एक जिला है ।इस जिले के किसानों से जबरदस्ती नील की खेती करवाई जा रही थी। जिससे
इस जिले के किसान काफी परेशान थे।क्योंकि नील की खेती करने से उनकी जमीन खराब हो रही थी ।तब गांधी जी ने चंपारन आ कर पहली बार सफल सत्याग्रह किया । वही सत्याग्रह अंगेजों के ख़िलाफ़ एक उपियुक्त हथियार बना और उसकी पहली परीक्षा बिहार की मिट्टी पर ही हुई । गांधी जी ने चरख़ा चलाने की
परंपरा भी यही से शुरू की ।

वक़्त आगे बढ़ा, देश आज़ाद हुआ । पर 1970 में जब देश का लोकतंत्र धुँधला पड़ने लगा था, क्योंकि कांग्रिस पार्टी बार बार सरकार बनाए जा रही थी। देश भ्रष्टाचार से जूझ रहा था, तब वो बिहार के ही छात्र थे जिन्होंने ने पहली बार कांग्रिस के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और
72 साल के j.p narayan के नृतत्व में आंदोलन किया, जो देखते ही देखते पूरे देश में फैल गया और इमर्जन्सी के बाद कांग्रिस की सरकार हार गयी।

दरसल, बिहार की आदत रही है सिहासन के विरोध जाने की। मुग़लों को सबसे बड़ी चुनौती भी एक बिहारी से ही मिली। शेरशाह सूरी, जिसने मुग़लों से सत्ता के
लिए सिर्फ़ बग़ावत ही नहीं की बल्कि हुमायूँ को हरा के 6 साल तक राज भी किया । G.T road की शुरुआत भी इसी ने बिहार से ही की ।

जब इस्लाम के कट्टरपन से देश जूझ रहा था, तब इस्लाम के शांतिप्रिय और सुधारप्रिय सूफ़ी संतों का बसेरा बिहार ही बना ।

जब इस्लाम से सिख समुदाए जूझ रहा था और
तब जिसने सिखों को एकजुट कर के सीखो में नयी जान फूँकी वो थे गुरु गोविंद साहिब । वो भी एक बिहारी ही थे, पटना में जन्मे थे । उनके छाप के कारण ही सिख भाइयों का धार्मिक ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब बना । गुरु गोविंद साहिब सीखो के आख़िरी धर्मगुरु बने ।

इन सब के अलावा बिहार इतिहास में अपने
चित्रकारी, गायकी, शिल्प कलाकारी और रेशम के लिए जाना जाता था। और आज भी ये सारे गुण बिहार में देखने को मिल जाता है ।

पर वक़्त के साथ बिहार कही खो गया । पहले इस्लामी अक्रांताओ के कारण इसकी निव कमज़ोर हुई। फिर मुग़लों ने पाटलिपुत्र छोड़ दिल्ली को अपनी राजधानी बना ली और बिहार को
अपने ग़ुलामों के हवाले कर के कमर तोड़ दी । बाक़ी रही कसर को यहाँ के भ्रष्ट नेताओ ने पूरा कर दिया । फिर लोग हम बिहारीयो से नफ़रत करने लगे, नफ़रत भी ऐसी की बाढ़ आए या लोग मारे कोई पूछने भी नहीं आता ।

शायद इतिहास ख़ुद को दोहराएगा और हम फिर उठ खड़े होंगे ।

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