और फिर इतिहास गवाह है कि गज़ल ‘दीवाना बनाना है तो…’ ने न जाने कितनों को ही दीवाना बना दिया।
पंडित जसराज ने खुद ये कुबूला था कि ये गज़ल ६ साल की उम्र में जब सुनी थी, तो इस तरह दीवाने हो गए कि उन्होंने गायक बनने की ठान ली थी।
पंडित जसराज ने खुद ये कुबूला था कि ये गज़ल ६ साल की उम्र में जब सुनी थी, तो इस तरह दीवाने हो गए कि उन्होंने गायक बनने की ठान ली थी।
इस रिकॉर्ड की डिमांड इतनी थी कि मेगाफोन कंपनी को खास इस रिकॉर्ड के लिए कलकत्ते में रिकॉर्ड प्रेसिंग प्लांट बनवानी पड़ी थी। इस गज़ल ने बेग़म अख़तर और बहज़ाद लखनवी, दोनों को बेहद मशहूर कर दिया था।
बहुत सालों बाद बेग़म अख़्तर ने पीर मियां की बात याद करते हुए कहा, ‘काश पीर साहब शोहरत और दौलत के बदले मुझे थोड़े चैन और सुकून की दुआ दिए होते, तो थोड़ी खुशियां मेरे भी दामन में होतीं…’
सन् १९४४ में इश्तिय़ाक अहमद अब्बासी से शादी के बाद बेग़म ने सालों तक गाना नहीं गया था।
सन् १९४४ में इश्तिय़ाक अहमद अब्बासी से शादी के बाद बेग़म ने सालों तक गाना नहीं गया था।
ये बात जब बहजाद लखनवी साहब तक पहुंची, तो बहज़ाद साहब ने लिखना ही छोड़ दिया।एक मुशायरे के दौरान बहजाद लखनवी से उनके दोस्त जब अख्तरी को लेकर मज़ाक करने लगे तो इस पर बहज़ाद ने मुस्कुराते हुए कहा था,
"ऐ देखने वाले, मुझे हंस-हंस के न देखो,
तुमको भी मोहब्बत कहीं मुझसा न बना दे"
"ऐ देखने वाले, मुझे हंस-हंस के न देखो,
तुमको भी मोहब्बत कहीं मुझसा न बना दे"
कुछ दिनों बाद बेग़म साहिबा से किसी ने यही सवाल पुछा, ‘क्या आप बहज़ाद लखनवी से प्यार करती हैं?’ बेग़म ने बिना किसी झिझक के जवाब दिया, "हां, मैं बहज़ाद से प्यार करती हूं, और क्यों न करूं… जिसने मेरे गाना छोड़ने पर लिखना ही छोड़ दिया, उसे प्यार न करूं तो किसे करूं"
एक बार बेग़म अख़्तर मंच पर जिगर मुरादाबादी की गज़ल गा रही थीं…
"तबीयत इन दिनों बेगना-ए-गम होती जाती है,
मिरे हिस्से की गोया हर खुशी कम होती जाती है"
सुनिए, जसराज जी क्या कहते है इस ग़ज़ल के बारे में..
"तबीयत इन दिनों बेगना-ए-गम होती जाती है,
मिरे हिस्से की गोया हर खुशी कम होती जाती है"
सुनिए, जसराज जी क्या कहते है इस ग़ज़ल के बारे में..
इस वक़्त पंजाब का एक शायर मंच पर जा पहुंचता है और बेग़म साहिबा से उसकी लिखी एक ग़ज़ल गाने की गुज़ारिश करता है।
बेग़म अख़्तर ने उसी वक्त मंच पर उस शायर की गज़ल को संगीत से सजाकर सुर दिया और कहा, "बड़े अच्छे शायर हो, बड़े अच्छे ख्याल हैं और ज़ुबान, माशाअल्लाह़…"
बेग़म अख़्तर ने उसी वक्त मंच पर उस शायर की गज़ल को संगीत से सजाकर सुर दिया और कहा, "बड़े अच्छे शायर हो, बड़े अच्छे ख्याल हैं और ज़ुबान, माशाअल्लाह़…"
वो शायर कोई और नहीं, सुदर्शन फाकिर थे, जो बेग़म के कारण ही मुशायरों की शान बन गए।
अगर कोई गज़ल बेग़म अख़्तर की कहानी सचमुच बताती है, तो वो गज़ल है सुदर्शन फ़ाकिर की ये गज़ल, जो उन्होंने बेगम के लिए ही लिखी थी।
"कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया...
अगर कोई गज़ल बेग़म अख़्तर की कहानी सचमुच बताती है, तो वो गज़ल है सुदर्शन फ़ाकिर की ये गज़ल, जो उन्होंने बेगम के लिए ही लिखी थी।
"कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया...
एक छोटी सी कहानी बेगम साहिबा की सुन लीजिए।
बेगम साहिबा और दूसरे शायरों के किस्से फिर किसी दिन सुनाऊंगा आप सभी को..
बेगम साहिबा और दूसरे शायरों के किस्से फिर किसी दिन सुनाऊंगा आप सभी को..
लेकिन जिस शायर से बेग़म अख्तर ने बेपनाह प्यार किया, जिसके दीवान को वो अपने तकिये के नीचे रखकर सोती थीं, जिसके दीवान को दिल से लगाकर रखा था, वो थे जिगर मुरादाबादी। वो इस कदर से उनकी गज़लों पर फिदा थीं कि एक वक्त था जब महफिलों में वो सिर्फ जिगर की ही गजलें गाती थीं।
जब जिगर मुरादाबादी की गज़लों को गाने के बाद भी ‘जिगर’ उनकी तरफ ध्यान नहीं दिए, तो बेग़म से नहीं रहा गया और उन्होंने जिगर को एक खत लिखा था।
‘आप शायर हैं और मैं एक गायिका. हम दोनों शादी क्यों नही कर लेते…’
‘आप शायर हैं और मैं एक गायिका. हम दोनों शादी क्यों नही कर लेते…’
इस पर ‘जिगर’ ने जो जवाब दिया, उसने बेग़म का दिल तोड़ दिया था।
जिगर ने लिखा था,
‘आप मेरा दीवान पढ़ती हैं, गाती हैं, सब सही है. लेकिन मुझसे मिलने की कोशिश न करें.’
जिगर ने लिखा था,
‘आप मेरा दीवान पढ़ती हैं, गाती हैं, सब सही है. लेकिन मुझसे मिलने की कोशिश न करें.’
कहते हैं ये बात जिगर ने इसलिए लिखी, क्योंकि जिगर दिखने में किसी ऐंगल से अच्छे नहीं थे और वो इसे स्वीकार करते थे। जिगर के जवाब ने बेग़म को बहुत ही दुखी कर दिया था और उस शाम की महफिल में बेग़म अख्तर ने ज़िग़र को नहीं गाया,
गालिब को गाया था...
गालिब को गाया था...
बुंदेलखंड की शान हुआ करती थी असगरी बाई..