हरिहर ने अपने भाई बुक्का के साथ विजयनगर राज्य की नींव डालने के बाद सबसे पहले गुट्टी तथा उसके आसपास के क्षेत्रों को अपनी सत्ता स्वीकार करने के लिए विवश किया. उन्होंने तुंगभद्र नदी के दक्षिणी तट पर स्थित अणेगोंडी के आमने-सामने दो नगर बसाए – विजयनगर और विद्यानगर.
हरिहर प्रथम (1336-1353)
हरिहर ने 18 अप्रैल, 1336 ई. को हिंदू रीति से अपना राज्याभिषेक सामारोह सम्पन्न किया. उसने भाई बुक्का की मदद से अपने राज्य का तेजी से विस्तार करना शुरू किया. 1346 ई. में मदुरा राज्य के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अंतिम होयसल नरेश बल्लाल चतुर्थ मारा गया.
हरिहर ने 18 अप्रैल, 1336 ई. को हिंदू रीति से अपना राज्याभिषेक सामारोह सम्पन्न किया. उसने भाई बुक्का की मदद से अपने राज्य का तेजी से विस्तार करना शुरू किया. 1346 ई. में मदुरा राज्य के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अंतिम होयसल नरेश बल्लाल चतुर्थ मारा गया.
इस स्थिति का लाभ उठाकर हरिहर ने होयसल साम्राज्य को विजयनगर में शामिल कर लिया. हरिहर ने अपनी मृत्यु से पूर्व अपने साम्राज्य का विस्तार पूर्व से पश्चिम के दोनों समुद्र तटों तक तथा उत्तर में कृष्णा नदी से दक्षिण में कावेरी नदी के निकट तक फैले मध्यवर्ती क्षेत्र तक विस्तृत किया.
हरिहर प्रथम के काल में बहमनी साम्राज्य (1346 में स्थापित) से पहली बार संघर्ष तब हुआ जब उसने कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के मध्य से स्थित रायचूर के किले पर अधिकार कर लिया.
हरिहर प्रथम ने 1356 ई. में मदुरा राज्य पर आक्रमण करके कुछ हद तक रायचूर के किले की क्षतिपूर्ति की क्योंकि उसने मदुरा से कुछ क्षेत्र जीतने में सफलता प्राप्त की. हरिहर ने न केवल साम्राज्य का विस्तार किया बल्कि प्रशासनिक प्रणाली की रुपरेखा भी तैयार की.
उसने काकतीय (दक्षिण का एक राजवंश) आदर्श का अनुसरण करते हुए अपने साम्राज्य को स्थलों और नाडुओं में संगठित किया. उनके शासन व्यवस्था के लिए ब्राह्मण की नियुक्ति की. उसने कृषि की प्रगति के लिए बहुत सारे कदम उठाये.
बुक्का प्रथम (1353-1377)
कुछ विद्वानों की राय है कि बुक्का प्रथम अपने भाई हरिहर प्रथम के काल में ही 1346 में संयुक्त शासक हो गया था और उसकी राजधानी गुट्टी थी लेकिन 1356 ई. में अपने भाई हरिहर की मृत्यु के बाद वह एकमात्र सम्राट के रूप में उसका उत्तराधिकारी बना
कुछ विद्वानों की राय है कि बुक्का प्रथम अपने भाई हरिहर प्रथम के काल में ही 1346 में संयुक्त शासक हो गया था और उसकी राजधानी गुट्टी थी लेकिन 1356 ई. में अपने भाई हरिहर की मृत्यु के बाद वह एकमात्र सम्राट के रूप में उसका उत्तराधिकारी बना
और उसने 1377 ई. तक राज किया. उसने चीन के साथ राजनैतिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए अपना राजदूत भेजा. उसे बहमनी सुल्तानों मुहम्मद प्रथम और मुजाहिद के साथ प्रायः संघर्षरत रहना पड़ा जिससे विजयनगर को क्षति पहुँची.
उसके काल में विजयनगर और बहमनी राज्य में तीन युद्ध (1360, 1365, 1367) हुए. इन युद्धों का मुख्य कारण यह था कि दोनों राज्य रायचूर दोआब पर अपना-अपना अधिकार स्थापित करना चाहते थे. यह क्षेत्र कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के मध्य में स्थित होने के कारण बहुत उपजाऊ था.
लेकिन इन युद्धों में बुक्का को सफलता प्राप्त नहीं हुई और वह हरिहर के द्वारा खोये रायचूर को पुनः नहीं प्राप्त कर सका. 1378 ई. में गुलबर्गा के सिंहासन पर जब मुहम्मद द्वितीय बैठा तब जाकर दोनों राज्यों में संघर्ष रुका क्योंकि नया बहमनी सुल्तान शान्ति प्रिय था.
बुक्का प्रथम के काल में उसके पुत्र कम्पन ने मदुरा की सुल्तानशाही को पराजित किया. उसने उत्तरी और दक्षिणी अर्काट को विजयनगर की अधीनता स्वीकार करने पर विवश किया.कम्पन की पत्नी गंगा देवी द्वारा रचित संस्कृत कविता “मदुरा विजयम्” के अनुसार उसने 1365-1370 के बीच यह सफलता प्राप्त की.
1379 में बुक्का प्रथम की मृत्यु हो गई. बुक्का एक महान योद्धा, राजनीतिज्ञ और विद्या प्रेमी शासक था. उसने सहनशील और उदारता की नीति अपनाते हुए जैनियों और वैष्णव सम्प्रदाय के लोगों में एकता की भावना स्थापित की.
निःसंदेह वह बहमनी राज्य के रायचूर का क्षेत्र प्राप्त नहीं कर सका लेकिन उसने अपने शासन काल में कोई भी क्षेत्र खोया नहीं. उसने अनेक मंदिरों की मरम्मत कराई,हिंदू विद्वानों के माध्यम से धर्म, दर्शनशास्त्र और कानून पर साहित्यिक रचनाएँ कराईं जिनमें वेदों पर सायणाचारी टीका प्रमुख है.
बुक्का की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हरिहर द्वितीय सिंहासन पर बैठा तथा उसने 27 साल (1377-1404) शासन किया और समूचे दक्षिण भारत में विजयनगर की प्रधानता सुदृढ़ की.
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